What is astrology And how does it work ज्योतिष शास्त्र क्या हैऔर यह कैसे काम करता है

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What is astrology And how does it work

 What is astrology And how does it work  ज्योतिष शास्त्र क्या हैऔर यह कैसे काम करता है

आज हम इस लेख में जानेंगे की ज्योतिष शास्त्र क्या हैऔर यह कैसे काम करता है |ज्योतिष शास्त्र को ग्रह नक्षत्रों की गति स्थिति संबंधित शास्त्र कहा जाता है |वह शास्त्र जो ग्रह नक्षत्रों की जानकारी देता है ज्योतिष शास्त्र कहलाता है |ज्योतिष शास्त्र में कितने ग्रह और नक्षत्र हैं यह बताता है। उनकी स्थिति क्या है कब कोई ग्रह उदय होता है कब कोई ग्रह अस्त होता है कब ग्रहण लगता है हमारे जीवन पर उसका क्या असर होता है ज्योतिष का अर्थ समझेंगे ज्योति का अर्थ है प्रकाश इसका मतलब ईश्वरीय प्रकाश शास्त्र का अर्थ होता है, जब भी किसी ज्ञान को सही तरीके से अंकित किया गया हो तो वह शास्त्र कहलाएगा इसलिए हम कह सकते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में ग्रह नक्षत्रों को और उनकी स्थिति को सही तरीके से जाना जा सकता है|

ग्रह और नक्षत्र क्या होते हैं? और कैसे काम करते हैं?

ज्योतिष शास्त्र को जानने से पहले ग्रह नक्षत्रों को जानना अति आवश्यक है| आकाश में बहुत सारे पिंड स्थित है जिनमें से कुछ स्थिर हैं और कुछ चलायमान हैं, जो चलते हुए दिखाई देते हैं वह ग्रह और जो चलायमान नहीं है वह नक्षत्र हैं ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की संख्या 9 बताई गई है और नक्षत्र 27 बताए गए हैं राशियों की संख्या 12 बताई गई है ग्रह नक्षत्र इन सभी राशियों को स्पर्श करते हुए घूमते रहते हैं| ज्योतिष शास्त्र में 27 बिंदुओं को नक्षत्रों की संज्ञा दी गई है, इनमें से कुछ प्रकाश पुंज की तरह दिखाई देते हैं और कुछ प्रकाश हीन होते हैं अर्थात कुछ नक्षत्रों पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है और कुछ पर नहीं पड़ता है|
ज्योतिष शास्त्र में कितने प्रवर्तक माने जाते हैं और उनके नाम क्या है?ज्योतिष शास्त्र में 18 प्रवर्तक माने जाते हैं| जिन में प्रथम प्रवर्तक सूर्य हैं, फिर पितामह, व्यास, वरिष्ठ, अत्रि, पराशर, नारद, कपिल, मरीचि, गर्ग, अंगिरा, मनु, लोमश, पौलश, व्यवन, यवन, बृगु और शौनक है|

ज्योतिष शास्त्र में कितने ग्रह और नक्षत्र होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह और 27 नक्षत्र होते हैं| जिनके नाम इस प्रकार हैं ग्रहों के नाम हैं| सूर्य,चंद्र, मंगल, बृहस्पति, बुध, शुक्र, शनि, राहु-केतु और नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वी, फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा ,अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती यह 27 नक्षत्र हैं|

वेदों और ज्योतिष शास्त्र में संबंध।

वेदों और ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही गहरा संबंध है| यज्ञ आदि कार्य को करने के लिए वेदों का निर्माण हुआ है, यज्ञ हवन आदि कार्यों को किस काल या समय में करना शुभ माना जाता है यह केवल ज्योतिष शास्त्र में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति को देखकर ही समझा जा सकता है या किसी भी यज्ञ या हवन का पूरा लाभ उठाने के लिए किस समय को निर्धारित किया जाए यह भी ज्योतिष शास्त्र से ही पता चल सकता है| इसलिए कहा जा सकता है कि वेदों और ज्योतिष शास्त्र में गहरा संबंध है

ज्योतिष शास्त्र को वेद चक्षु क्यों कहा जाता है? 

ज्योतिष शास्त्र को वेद चक्षु अर्थात वेदों की आंखें भी कहा गया है इसका कारण यह है कि जिन चीजों को व्यक्ति साधारण तरीके से नहीं देख सकता उसे ज्योतिष शास्त्र से देखा जा सकता है जैसे ज्योतिष शास्त्र की सहायता से पहले ही बताया जा सकता है कि ग्रहण कब लगेगा सूर्य उदय या अस्त कितने समय पर होगा आदि इन्हीं सब विशेषताओं के कारण ज्योतिष शास्त्र को प्रत्यक्ष शास्त्र भी कहा जाता है| शास्त्र में समय-समय पर ग्रह नक्षत्रों को जानने के लिए कुछ गणना की जाती है ग्रह नक्षत्रों की अलग-अलग गणना के लिए बहुत सारे योगो का वर्णन किया गया है जैसे किस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति का भविष्य क्या रहेगा ग्रहों की गति उनके शुभ या अशुभ फल किस काल में क्या करने से क्या फल होगा भविष्य में आने वाली आपदाओं भविष्य में आने वाली सभी तरीके की घटनाओं को ज्योतिष के द्वारा ही देखा जा सकता है इसीलिए ज्योतिष शास्त्र को वेद चक्षु भी कहा जाता है|                            

ज्योतिष शास्त्र का इतिहास 

ज्योतिष शास्त्र का इतिहास जानने से पहले यह आवश्यक है कि ज्योतिष शास्त्र को कितने कालों में विभाजित किया गया है और हर काल में इसकी क्या स्थिति रही है ज्योतिष शास्त्र को वैदिक काल वेदांग काल और आधुनिक काल में अलग अलग तरीके से देखा गया है पहला वैदिक काल इस काल में वेद मंत्रों का संकलन हुआ |वेद मंत्रों की रचना किसके द्वारा हुई इसमें अनेक मत पाए जाते हैं यह निश्चित तो नहीं है परंतु अनादि काल में महर्षि समाधि में बैठकर मंत्रों को अनुभव करते थे परंतु यह माना जाता है, कि उस काल में भी लोग मंत्रों को जानते थे| उस समय लिखने की अधिक जानकारी नहीं थी इसलिए लिखित में अधिक प्रमाण नहीं मिल पाए इस काल में ज्योतिष शास्त्र द्वारा ग्रह नक्षत्रों की स्थिति देखी जाती थी यज्ञ आदि कार्य संपन्न किए जाते थे|


वेदांग काल

 वेदांग काल का समय 1500 ईस्वी पूर्व से 500 ईसवी तक कहा जाता है इस काल में वेद के 6 अंग ज्योतिष व्याकरण आदि बताए गए हैं उनका स्वतंत्र रूप से विकास हुआ इसलिए इसे वेदांग काल कहा जाता है इस काल में लगधाचार्य ने वेदांग ज्योतिष ग्रंथ की रचना की इसमें नक्षत्रों के ग्रंथ स्वरूप उनके स्वामी मास ऋतु अयन मुहूर्त आदि विविध विषयों की विवेचना की गई है| इसका जो समय काल था उसे सिद्धांत काल भी कहां गया |

आधुनिक काल

आधुनिक काल को सन 1600 ईस्वी से आज तक जो समय चल रहा है |उसे माना जाता है आधुनिक काल में ज्योतिष का अलग-अलग क्षेत्रों में विकास हुआ अलग-अलग गणना करने के लिए अनेक नए यंत्रों का जैसे कंप्यूटर आदि का उपयोग किया गया, ग्रहों का फल जानने के लिए अनेक जातक ग्रहों की रचना हुई पंचांग का महत्व हर क्षेत्र में बढ़ने लगा जैसे सामूहिक विज्ञान, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तु विज्ञान, भूकंप विज्ञान ,वर्षा विज्ञान, ऐसे कई ज्योतिष की शाखाएं बढ़ने लगी आधुनिक काल में कई महत्वपूर्ण विद्वान हुए जैसे श्री नीलांबर झा, श्री बापू देव जी शास्त्री, श्री वेंकटेश केतकर ,पंडित सुधाकर द्विवेदी जी और भी कई हैं|
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